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Maa Shailputri Katha नवरात्रि के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की व्रत कथा के श्रवण से होगा सुख-समृद्धि

Maa Shailputri Katha नवरात्रि के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की व्रत कथा के श्रवण से होगा सुख-समृद्धि : हम यहां आपको नवरात्रि के पहले दिन की जाने वाली मां शैलपुत्री जी के बारे में बताने जा रहे हैं, यहां हम आपको माता शैलपुत्री देवी का स्वरूप और मां शैलपुत्री कथा की विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।

Maa Shailputri Katha नवरात्रि के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की व्रत कथा के श्रवण से होगा सुख-समृद्धि

माता शैलपुत्री देवी का स्वरूप

उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है | नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होती  है | पौराणिक कथानुसार शैलपुत्री देवी अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी | उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था |

मां शैलपुत्री देवी की कथा

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, लेकिन शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।

अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारण से हमसे नाराज हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, लेकिन हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना सही नहीं होगा।

शंकरजी के यह कहने से भी सती नहीं मानी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुंचा। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं।

संदर्भ: इस Maa Shailputri Katha नवरात्रि के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की व्रत कथा के श्रवण से होगा सुख-समृद्धि की पोस्ट में आपको मां शैलपुत्री की व्रत कथा और इसके स्वरूप के बारे में यहां विस्तार से बताने जा रहे हैं।

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