Budh Pradosh Vrat Katha सुख-समृद्धि पाने के लिए बुध प्रदोष व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा : हमारे हिंदू धर्म के अनुसार प्रदोष व्रत यानि त्रयोदशी व्रत के दिन भगवान शिव की कृपा पाने के लिए बुध प्रदोष व्रत किया जाता हैं। बुध प्रदोष व्रत कथा करने से साधक को भगवान् शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं साथ में सुख-समृद्धि के साथ ज्ञान की कृपा होती हैं। इसलिए बुध प्रदोष व्रत को बहुत मंगलकारी व लाभकारी बताया गया है। वैसे हर वार में आने वाले प्रदोष व्रत कथा के अलग-अलग ही फायदे और लाभ बताये गये हैं। इसलिए यंहा हम केवल Budh Pradosh Vrat Katha के बारे में बताने जा रहे हैं।
सुख-समृद्धि पाने के लिए बुध प्रदोष व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा
जीवन भर के उपाय के साथ बनवाये वैदिक जन्म कुण्डली केवल 500/- रूपये में
10 साल उपाय के साथ बनवाए लाल किताब कुण्डली केवल 500/- रूपये में
बुध प्रदोष व्रत कथा का महत्व
बुध त्रयोदशी अर्थात् बुध प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।
सूत जी आगे बोले- “बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत से सर्व कामनाएं पुर्ण होती हैं। इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए । शंकर भगवान की आराधना धूप, बेल-पत्रादि से करनी चाहिए।”
बुध प्रदोष व्रत कथा के लाभ एवं फायदे
- इस Budh Pradosh Vrat Katha करने से साधक की सारी इच्छाये पूर्ण होती हैं।
- इस व्रत को करने से जातक को ज्ञान की प्राप्ति होती हैं।
- Budh Pradosh Vrat Katha करने से जातक के जीवन में धन धान्य की कमी नही रहती हैं।
बुध प्रदोष व्रत कथा
एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ । विवाह के दो दिनों बाद उसकी पत्नी मायके चली गई । कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके यहां गया । बुधवार जो जब वह पत्नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता । लेकिन वह नहीं माना और पत्नी के साथ चल पड़ा । नगर के बाहर पहुंचने पर पत्नी को प्यास लगी । पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा । पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई।
थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है । उसको क्रोध आ गया । वह निकट पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा । उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी । पत्नी भी सोच में पड़ गई । दोनों पुरुष झगड़ने लगे । भीड़ इकट्ठी हो गई । सिपाही आ गए । हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्चर्य में पड़ गे । उन्होंने स्त्री से पूछा ‘उसका पति कौन है?’ वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई ।
तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- ‘हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-श्वशुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करा लिया । मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा ।’ जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अन्तर्धान हो गया । पति-पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए । उस दिन के बाद से पति-पत्नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत रखने लगे।