Mauni Amavasya Vrat Katha Or Uska Mahatva मौनी अमावस्या व्रत कथा और जानें इसका महत्व : माघ मास में आने वाली अमावस्या “मौनी अमावस्या” के नाम से जानी जाती है। “मौनी अमावस्या” का बड़ा महत्व माना जाता है। इस दिन मौन व्रत धारण करना चाहिए। इस दिन मौन धारण करते हुए सूर्य उदय से पहले स्नान करना लाभकारी रहता है। इस दिन धार्मिक स्थल पर जाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है। ऐसा माना जाता है की इस दिन संगम पर देव व देवता स्नान करने आते है। इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने के लिए कहा जाता है। यह मास भी कार्तिक मास के सामान पुण्य मास कहलाता है।
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यदि “मौनी अमावस्या” सोमवार के दिन आ जाती है तो इसका महत्व व प्रभाव और दोनों से ज्यादा बढ़ जाता है। हमारे शास्त्रों में कहा जाता है की सतयुग में जातक द्वारा तप करने से, त्रेता युग में जातक द्वारा ज्ञान से, द्वापर युग में श्री हरी की भक्ति से व कलयुग में दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों व् धार्मिक स्थल पर जाकर स्नान करके सामर्थ के अनुसार दान करना चाहिए। इस आप दान में अन्न, गर्म कपडे, धन, गो दान, भूमि, आदि का दान करना बहुत अच्छा रहता है। इस दिन तिल का दान करना भी बहुत उत्तम रहता है। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें।
मौनी अमावस्या से जुड़ी खास बातें
– धर्म शास्त्रों के अनुसार Mauni Amavasya पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण करने का विशेष महत्व है। इस तिथि पर सुबह स्नान कर तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, व वस्त्र का दान करना चाहिए। काले तिल के लड्डू बनाकर उसे लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मण को दान देने एवं भोजन कराने से पितरों को शांति प्राप्त होती है। श्राद्ध तर्पणादि करने का भी इस दिन बड़ा महत्व माना गया है।
– अमा का अर्थ है करीब तथा वस्य का अर्थ है रहना। अमावस्या का पूर्ण अर्थ है करीब रहना। इस दिन चंद्रमा दिखाई नही देता तथा तिथियों में इस तिथि के स्वामी पितर होते हैं। चंद्रमा दिखाई नही देने से शरीर में एक महत्वपूर्ण तत्व जल का संतुलन ठीक नही रहता जिससे निर्णय सही नही हो पाते नकारात्मकता अधिक होती है। Mauni Amavasya तिथि पर मौन रहने का बड़ा महत्व माना गया है तथा संयम पूर्वक रहने का विधान है।
– अमावस्या तिथि होने से चंद्रमा सूर्य के साथ मकर राशि में होते हैं, जो शनि के स्वामित्व वाली राशि है। सूर्य एवं चंद्रमा दोनों से शनि शत्रु का भाव रखते हैं। चंद्रमा मन का स्वामी है उसके शत्रु राशि मे होने से मन चंचल होने के संभावना रहती है एवं स्वयं का अहित करने वाले विचार मन में आ सकते है। इसलिए Mauni Amavasya के दिन संयम पूर्वक बिताने की सलाह एवं मुनियों जैसा जीवन बिताने की सलाह हमारे धर्म ग्रंथों में दी गई है।
– अमावस्या को सूर्य चंद्रमा की युति वाणी संयम के लिए भी आवश्यक मानी गई अर्थात मौन रहें। यह नही हो सके तो किसी के भी प्रति कटु शब्दों को प्रयोग नही करें एवं असत्य भाषा से बचने का प्रयास करें। वाणी के इस संयम को भी मौन की संज्ञा दी गई है।
मौनी अमावस्या व्रत कथा
प्राचीन काल में कांचीपुरी नामक नगर में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उनकी धर्मपत्नी बहुत गुणवान थी। दम्पत्ति को 7 पुत्र और एक पुत्री थी। देवस्वामी ने अपनी पुत्री के विवाह लिए ज्योतिष से एक बार सलाह ली। ज्योतिष ने कुंडली देख ब्राह्मण को ग्रह दशा के बारे में बताया।
इस दौरान ज्योतिष ने बताया कि विवाह के बाद कन्या विधवा हो जाएगी। ज्योतिष की ये बात सुनते ही ब्राह्मण दंपत्ति चिंता में डूब गए। लेकिन ज्योतिष ने साथ ही उन्हें समस्या का समाधान भी बताया। ज्योतिष ने ब्राह्मण को सलाह दी कि सिंहलद्वीप की धोबिन सोमा की पूजा करने से दोष दूर हो जाते हैं। देवस्वामी ने धोबिन को घर बुलाकर उनकी पूजा की ब्राह्मण देवस्वामी के अतिथि सत्कार से धोबिन प्रसन्न हो गई और उसने पुत्री के पति को जीवनदान दिया।
कालांतर में जब ब्राह्मण की पुत्री के पति की मृत्यु हुई तो वे धोबिन के वरदान से पुनः जीवित हो उठा। किन्तु जब धोबिन की पूजा करने का पुण्य क्षीण हो गया, तो पुनः उसके पति की मृत्यु हो गई। उस समय ब्राह्मण दंपत्ति ने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर मौनी अमावस्या के दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की ऐसा करने से वे पुनः जीवित हो उठे।
मौनी अमावस्या में तिल का दान करने का महत्व
Mauni Amavasya पर तिल का महत्व भी बढ़कर बताया गया है। सफेद तिल भगवान विष्णु को अतिप्रिय एवं काला तिल पितरों के तर्पण में प्रयोग होता है। अत: इस दिन देवों की तृप्ति के लिए सफेद तिल का एवं पितरों के लिए काले तिल का दान करना चाहिए। इसके साथ ही कपास एवं छत्री का दान करना भी शुभ फल देने वाला होता है।
मौनी अमावस्या में ऊनी वस्त्र का दान
इस Mauni Amavasya पर शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। इसलिए इस दिन जरूरतमंदों को कंबलादि ऊनी वस्त्र दान देना चाहिए। किसी गरीब को यदि स्वेटर, कंबलादि का दान दिया जाता है, तो राहु एवं शनि की महादशा का अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसी दिन दूसरों के लिए अलाव जलाने से अग्रि देवता प्रसन्न होते हैं एवं सूर्य, मंगल एवं गुरु की कृपा प्राप्त होती है।