Varuthini Ekadashi Vrat Katha: वरूथिनी एकादशी के दिन जरूर सुनें यह व्रत कथा, मिलेगी मोक्ष की प्राप्ति : वरूथिनी एकादशी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाई जाती हैं ! यानी आती हैं ! वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते है और अंत में मोक्ष को प्राप्त होता हैं ! वरूथिनी एकादशी के उपवास का फ़ल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है !
शास्त्रों अनुसार कहा गया है की हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है । हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है । अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं । शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है ।
वरूथिनी एकादशी वाले दिन का व्रत करने से व्यक्ति को अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल प्राप्त होता है ! जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है।
Varuthini Ekadashi Vrat Katha: वरूथिनी एकादशी के दिन जरूर सुनें यह व्रत कथा, मिलेगी मोक्ष की प्राप्ति
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वरूथिनी एकादशी व्रत कब हैं? 2024
इस साल वरूथिनी एकादशी व्रत को 04 मई, वार शनिवार के दिन मनाई जायेगी।
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम का राजा राज्य करता था ! राजा बड़ा ही दानवीर व परम भक्त था ! भगवान विष्णु का परम भक्त था ! एक दिन मान्धाता राजा जंगल में तपस्या करने को गये ! जब वह वन में भगवान श्री विष्णु जी की तपस्या कर रहे थे तो तबी वंहा एक जंगली भालू आ गया ! जंगली भालू ने राजा मान्धाता को तपस्या करते हुए देखा भालू राजा का पैर पकड़कर उसे खींचते हुए जंगल में ले गया ! और राजा का पैर खाने लगा !
तभी राजा ने भगवान श्री हरी से अपने जीवन के बचाने की प्रार्थना करने लगे जब भगवान श्री हरी प्रकट हुए और भगवान श्री विष्णु जी ने अपने सुर्दशन चक्र से भालू का सर उसके शरीर से अलग कर दिया पर जब तक राजा मान्धाता का पैर भालू खा चुका था ! इस पर भगवान श्री हरी ने कहा की यह तुम्हारे पिछले जन्मो का फ़ल हैं !
राजा ने भगवान श्री हरी से अपने पैर को वापस सही करने की प्रार्थना करी जब श्री हरी ने कहा की तुम मथुरा जाकर एकादशी तिथि को आने वाली वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा अर्चना करना ! उस पूजा अर्चना के प्रभाव से तुम पहले जैसे पुनः सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे ! ऐसा कहते ही भगवान अन्तर्धान हो गये ! राजा मान्धाता ने श्री हरी के बताये अनुसार मथुरा जाकर विश्वास व श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत व् उपवास रखकर पूजा अर्चना की इससे राजा पुन: संपूर्ण शरीर के अगों वाला हो गया !
हे राजन् ! जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है !
वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित नीचे दी गई वस्तुओं का त्याग करना चाहिए:
1. काँसे के बर्तन में भोजन करना,2. माँस, 3. मसूर की दाल, 4. चने का शाक, 5. कोदों का शाक, 6. मधु (शहद), 7. दूसरे का अंत, 8. दूसरी बार भोजन करना, एवं 9. स्त्री प्रसंग, व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए । उस दिन पान खाना, दातुन करना, दूसरे की निंदा करना तथा चुगली करना एवं पापी मनुष्यों के साथ बातचीत सब त्याग देना चाहिए। उस दिन क्रोध, मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए। इस Varuthini Ekadashiव्रत में नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है !
संदर्भ: Varuthini Ekadashi Vrat Katha: वरूथिनी एकादशी के दिन जरूर सुनें यह व्रत कथा, मिलेगी मोक्ष की प्राप्ति की पोस्ट में आपको वरूथिनी एकादशी के दिन पूजा व्रत कथा के बारे बताया गया हैं, इस वरूथिनी एकादशी व्रत कथा को आपको पूजा अर्चना करते समय पाठ करने का महत्व हैं।